IPL 2024बोर्ड रिजल्ट्सचुनाववेब स्टोरीकरियरदेशअर्थजगत
50 शब्दों में मत
---Advertisement---

भगवत गीता: भगवद गीता के सभी अध्याय व श्लोक

By Hindulive.Com

Published on:

---Advertisement---

भगवत गीता श्लोक हिंदी का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद सहित इस लेख में आपका स्वागत है. हमारा उद्देश्य भगवत गीता ज्ञान का रसपान कराना है. साक्षात भगवान श्री कृष्ण से मुख से कहे गए एक-एक शब्द अनमोल हैं। भगवद्गीता का अध्ययन हर किसी को करना चाहिए।

       

यद्यपि भगवत गीता श्लोक हिंदी का व्यापक प्रकाशन और पठन होता रहा है किंतु बोलता है. यहां संस्कृत महाकाव्य महाभारत की एक उपकथा के रूप में प्राप्त है. महाभारत में वर्तमान कलियुग की घटनाओं का विवरण मिलता है. इसी युग के प्रारंभ में आज से लगभग ५००० वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने अपने मित्र तथा भक्त अर्जुन को भगवत गीता का उपदेश दिया था.

उनकी यह वार्ता जो मानव इतिहास की सबसे महान दार्शनिक तथा धार्मिक वार्ताओं में से एक है, उस महायुद्ध के शुभारंभ के पूर्व हुई, जो धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों तथा उनके चचेरे भाई पांडवों या पांडु के पुत्रों के मध्य होने वाला भ्रातृघातक संघर्ष था.

श्रीमद् भगवत गीता श्लोक हिंदी

धृतराष्ट्र तथा पांडू भाई-भाई थे, जिनका जन्म कुरु वंश में हुआ था और वह राजा भरत के वंशज थे, जिनके नाम पर ही महाभारत नाम पड़ा. क्यूंकि बड़ा भाई धृतराष्ट्र जन्म से अंधा था, अतएव राज सिंहासन उसे न मिलकर उसके छोटे भााई पांडू को मिला. पांडु की मृत्यु अल्प आयु में हो गई अतएव उनके 5 पुत्र-युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल तथा सहदेव धृतराष्ट्र की देखरेख में रख दिए गए, क्योंकि उसे कुछ काल के लिए राजा बना दिया गया था. इस तरह धृतराष्ट्र तथा पांडु के पुत्र एक ही राज महल में बड़े हुए. दोनों ही को गुरु द्रोण द्वारा सैन्य कला का प्रशिक्षण दिया गया और पूजा भीष्म पितामह उनके परामर्शदाता थे.

तथापि धृतराष्ट्र के पुत्र विशेषता सबसे बड़ा पुत्र दुर्योधन पांडवों से घृणा और ईर्ष्या करता था. अंधा तथा दुर्बलहृदय धृतराष्ट्र पांडव पुत्रों के स्थान पर अपने पुत्रों को राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहता था. इस तरह धृतराष्ट्र की सहमति से दुर्योधन ने पांडु के युवा पुत्रों की हत्या करने का षडयंत्र रचा. पांचो पांडव अपने चाचा विदुर तथा अपने ममेरे भाई भगवान श्री कृष्ण के संरक्षण में रहने के कारण अनेक प्राणघातक रमणों के बाद भी अपने प्राणों को सुरक्षित रख पाए.

भगवान श्रीकृष्ण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं, अपितु साक्षात परम ईश्वर है, जिन्होंने इस धराधाम में अवतार लिया था और अब एक समकालीन राजकुमार की भूमिका निभा रहे थे. वे‌ पांडु की पत्नी कुंती या तथा पांडवों की माता के भतीजे थे इस तरह संबंधी के रूप में तथा धर्म के शाश्र्व्त पालक होने के कारण वे धर्म परायण पांडू पुत्रों का पक्ष लेते रहे और उनकी रक्षा करते रहे.

पांडुपुत्रो की रक्षा के लिए श्री भगवान ने लिया था अवतार

भगवान श्रीकृष्ण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं, अपितु साक्षात परम ईश्वर है, जिन्होंने इस धराधाम में अवतार लिया था और अब एक समकालीन राजकुमार की भूमिका निभा रहे थे. वे‌ पांडु की पत्नी कुंती या तथा पांडवों की माता के भतीजे थे इस तरह संबंधी के रूप में तथा धर्म के शाश्र्व्त पालक होने के कारण वे धर्म परायण पांडू पुत्रों का पक्ष लेते रहे और उनकी रक्षा करते रहे.

किंतु अंततः चतुर्थी युद्ध ने पांडवों को द्यूतक्रीड़ा के लिए ललकारा. उस निर्णायक स्पर्धा में दुर्योधन तथा उसके भाइयों ने पांडवों की सती पत्नी द्रोपदी पर अधिकार प्राप्त कर लिया और फिर उसे राजाओं तथा राजकुमारों की सभा के मध्य निर्वस्त्र करने का प्रयास किया. कृष्ण के दिव्य हस्तक्षेप से उसकी रक्षा हो सकी. उस द्यूतक्रीड़ा में छल कपट के कारण पांडवों की हार हुई तथा उन्हें अपने राज्य से वंचित होना पड़ा और 13 वर्ष तक वनवास के लिए जाना पड़ा.

शक्तिशाली योद्धा अर्जुन युद्धाभिमुख विपक्षी सेनाओं में अपने निकट सम्बन्धियों, शिक्षकों तथा मित्रों को युद्ध में अपना-अपना जीवन उत्सर्ग करने के लिए उद्यत देखा है। वह शोक तथा करुणा से अभिभूत होकर अपनी शक्ति खो देता है, उसका मन मोहग्रस्त हो जाता है और वह युद्ध करने के अपने संकल्प को त्याग देता है।

अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्य निरीक्षण

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयत्सवः। मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय॥१॥

अर्थात

संजय धर्म भूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे तथा पांडु के पुत्रों ने क्या किया?

वनवास से लौटकर पांडवों ने धर्मसम्मत विधि से दुर्योधन से अपना राज्य मांगा, किंतु उसने देने से इंकार कर दिया. क्षत्रिय के शास्त्रोंनुमोदित कर्तव्य को पूर्ण करने के लिए पांचों पांडवों ने अंत में अपना पूरा राज्य ने मांग कर केवल 5 गांव की मांग रखी किंतु दुर्योधन सुई की नोक पर भी भूमि देने के लिए सहमत नहीं हुआ. अभी तक तो पांडव सहनशील बने रहे लेकिन अब उनके लिए युद्ध करना अवश्यंभावी हो गया था.

विश्वभर के राजकुमारों में से कुछ धृतराष्ट्र के पुत्रों के पक्ष में थे, तो कुछ पांडवों के पक्ष में. उस समय कृष्ण स्वयं पांडव पुत्रों के संदेशवाहक बन कर शांति का संदेश लेकर धृतराष्ट्र की राज्यसभा में गये जब उनकी याचना अस्वीकृत हो गई, तो युद्ध निश्चित है।

अध्याय 2: गीता का सार 

अर्जुन शिष्य-रूप में कृष्ण की शरण ग्रहण करता है और कृष्ण उससे नश्वर भौतिक शरीर तथा नित्य आत्मा के मूलभूत अन्तर की व्याख्या करते हुए अपना उपदेश प्रारम्भ करते हैं। भगवान् उसे देहान्तरण की प्रक्रिया, परमेश्वर की निष्काम सेवा तथा स्वरूपसिद्ध व्यक्ति के गुणों से अवगत कराते हैं।

आत्मा, ईश्वर तथा इन दोनों से सम्बन्धित दिव्य ज्ञान शुद्ध करने, तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है। ऐसा ज्ञान कर्मयोग का फल है।

अध्याय तीन: कर्मयोग

आत्मा, ईश्वर तथा इन दोनों से सम्बन्धित दिव्य ज्ञान शुद्ध करने, तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है। ऐसा ज्ञान कर्मयोग का फल है। 

अर्जुन शिष्य रूप में कृष्ण की ‌शरण ग्रहण करता है और कृष्ण उससे निश्वर भौतिक शरीर तथा नित्य आत्मा के मूलभूत अंतर की व्याख्या करते हुए अपना उपदेश प्रारंभ करते हैं. भगवान उसे देहान्तरण की प्रक्रिया परमेश्वर की निष्काम सेवा तथा स्वरूपसिद्ध व्यक्ति के गुणों से अवगत कराते हैं.

इस भौतिक जगत में हर व्यक्ति को किसी न किसी प्रकार के कर्म में प्रवृत्त होना पड़ता है किंतु यही कर्म उसे इस जगत में बांध दिया मुक्त कराते हैं. निष्काम भाव से परमेश्वर की प्रसन्नता के लिए कर्म करने से मनुष्य कर्म के नियमों से छूट सकता है और आत्मा तथा प्रमेश्वर विषय ज्ञान प्राप्त कर सकता है.

अध्याय 4: गीता ज्ञान

आत्मा, ईश्वर तथा इन दोनों से संबंधित दिव्य ज्ञान शुद्ध करने, तथा मोक्ष प्रदान करने वाला है ऐसा ज्ञान कर्म योग का फल है. भगवान गीता के प्राचीन इतिहास, इस भौतिक जगत में बारम्बार अपने अवतरण की महत्ता तथा गुरु के पास जाने की आवश्यकता का उद्देश्य देते हैं.

अध्याय 5: कर्म योग कृष्णभावनाभावित

ज्ञानी पुरुष दिव्य ज्ञान की अग्नि से शुद्ध होकर बाह्रात: सारे कर्म करता है, किंतु अंतर में उन कर्मों के फल का परित्याग करता हुआ शांति, विरक्ति, सहिष्णुता, आध्यात्मिक दृष्टि तथा आनन्द की प्राप्ति करता है.

अध्याय 6: ध्यानयोग

अष्टांगयोग मन तथा इंद्रियों को नियंत्रित कर ध्यान को परमात्मा पर केंद्रित करता है. इस विधि की परिणीति समाधि में होती है.

अध्याय 7: भगवद्ज्ञान

भगवान श्री कृष्ण समस्त कारणों के कारण परम सत्य है, महात्मागण भक्तिपूर्वक उनकी शरण ग्रहण करते हैं किंतु अपवित्र जन पूजा के अन्य विषयों की ओर अपने मन को मोड़ देते हैं.

इसे भी पढ़ें: इस मंदिर में खड़े स्वरूप में मिलते हैं नंदी, बेहद रोचक है कारण

अध्याय 8: भगवत्प्राप्ति

भक्ति पूर्वक भगवान कृष्ण का आजीवन स्नान करते रहने से और विशेषतया मृत्यु के समय ऐसा करने से मनुष्य परम धाम को प्राप्त कर सकता है।

अध्याय 9: परम गुह्रा ज्ञान

भगवान श्रीकृष्ण परमेश्वर और पूज्य है. भक्ति के माध्यम से जीव उनसे शाश्र्वत संबंध है. शब्द विभक्ति को जागृत करके मनुष्य कृष्ण के धाम वापस जाता है.

अध्याय 10: भगवान का ऐश्वर्या

दसवें अध्याय के भगवत गीता श्लोक हिंदी में बाल सुंदरी ऐश्वर्या उत्कृष्टा प्रदर्शित करने वाली समस्त अद्भुत घटनाएं चाहे वह इस लोक में हूं या आध्यात्मिक जगत में कृष्ण की दैवी शक्तियों एवं ऐश्वर्य की आंशिक अभिव्यक्तियां है. समस्त कारणों के कारण-स्वरूप तथा स्वरूप स्वरूप कृष्ण समस्त जीवो के परम पूजनीय हैं.

अध्याय 11: विराट रूप

भगवान कृष्ण अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं और विश्व-रूप में अपना अद्भुत असीम रूप प्रकट करते हैं. इस प्रकार वे अपनी दिव्यता स्थापित करते हैं. कृष्ण बतलाते हैं कि उनका सर्व आकर्षक मानव-रूप ईश्वर का आदि रूप है. मनुष्य शुद्ध भक्ति के द्वारा ही इस रूप का दर्शन कर सकता है.

अध्याय 12: भक्तियोग

कृष्ण के शब्द प्रेम को प्राप्त करने का सबसे सुगम और सर्वोच्च साधन भक्ति योग है. इस परम पद का अनुसरण करने वालों में दिव्या को उत्पन्न होते हैं.

अध्याय 13: प्रकृति, पुरुष तथा चेतना (भगवत गीता श्लोक हिंदी)

भगवत गीता में कहा गया है कि जो व्यक्ति शरीर आत्मा तथा इनसे भी प्रे परमात्मा के अंतर को समझ लेता है उसे इस भौतिक जगत से मोक्ष प्राप्त होता है.

अध्याय 14: प्रकृति के तीन गुण

सारी देह धारी जीब भौतिक प्रकृति के तीन गुणों के अधीन हैं- यह हैं? सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण. कृष्ण बतलाते हैं कि वह गुण क्या है? यह हम पर किस प्रकार क्रिया करते हैं कोई इनको कैसे पार कर सकता है? और दिव्य पद को प्राप्त व्यक्ति के कौन-कौन से लक्षण है?

अध्याय 15: पुरुषोत्तम योग

वैदिक ज्ञान का चरम लक्ष्य अपने आपको भौतिक जगत के पास से विलग करना तथा कृष्ण को भगवान् मानना है. जो कृष्ण के प्रमुख शुरू को समझ लेता है, वह उनकी शरण ग्रहण करके उनकी भक्ति में लग जाता है.

अध्याय 16: दैवी तथा आसुरी स्वभाव

हिंदी भावार्थ: शास्त्रों के नियमों का पालन न कर के मनमाने ढंग से जीवन व्यतीत करने वाले तथा आसुरी गुणों वाले व्यक्ति योनियों को प्राप्त होते हैं और आगे भी भावबंधन मैं पड़े रहते हैं. किंतु दैवी गुणों से संपन्न तथा शास्त्रों को आधार मानकर नियमित जीवन बिताने वाले लोग आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त करते हैं.

 अध्याय 17: श्रद्धा की विभाग

हिंदी भावार्थ: भौतिक प्रकृति के तीन गुणों से तीन प्रकार की श्रद्धा उत्पन्न होती है रजोगुण तथा तमोगुण में श्रद्धा पूर्वक किए गए कर्मों से अस्थाई फल प्राप्त होते हैं, जबकि शास्त्र सम्मत विधि से सतोगुण में रहकर संपन्न कर्म हृदय को शुद्ध करते हैं. यह भगवान श्री कृष्ण के प्रति श्रद्धा श्रद्धा तथा भक्ति उत्पन्न करने वाले होते हैं.

अध्याय 18: उपसंहार – सन्यास की सिद्धि

हिंदी भावार्थ: कृष्ण वैराग्य का अर्थ और मानवीय चेतना तथा कर्म पर प्रकृति के गुणों का प्रभाव समझाते हैं. वे ब्रह्मा अनुभूति भगवद्गीता (Bhagavat Gita) की महिमा तथा भगवत गीता की चरम निष्कर्ष को समझते हैं यह चरम निष्कर्ष यह है कि धर्म का सर्वोच्च मार्ग भगवान श्री कृष्ण की परम शरणागति है जो पूर्ण प्रकाश प्रदान करने वाली है और मनुष्य को कृष्ण के नित्य धाम को वापस जाने में असमर्थ बनाती है.

निष्कर्ष

इस लेख के माध्यम से हमने भगवत गीता श्लोक हिंदी ज्ञान को संक्षिप्त में परिचय कराया है. हम भगवान श्री कृष्ण द्वारा कही गई इस भगवत वाणी को जन जन तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं.

Hindulive.Com

This article was written by the Hindu Live editorial team.

---Advertisement---