उत्तराखंड में मेट्रो रेल परियोजना के स्टार्टअप के लिए 2017 में एक संगठन का गठन कर दिया गया था लेकिन आज 8 सालों बाद भी उत्तराखंड में मेट्रो रेल परियोजना का कोई काम नहीं हुआ है। इस समय अंतराल के बीच उत्तराखंड मेट्रो रेल परियोजना के कार्य पर 90 करोड़ से अधिक पैसे खर्च हो चुके हैं। लेकिन कोई फायदा देखने को नहीं मिला है उत्तराखंड रेल परियोजना के अनुसार पहले दिन देहरादून मेट्रो रेल चलाई जानी थी, लेकिन मेट्रो रेल चलाई जाने के लिए अभी तक डीपीआर तक भी नहीं बना है। दरअसल कॉरपोरेशन की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, यहां के वेतन पर करीब साढ़े 6 करोड रुपए सालाना खर्च हो रहे हैं। जबकि इसके अलावा अन्य डेढ़ करोड़ रुपये अन्य कार्यों पर खर्च हो रहे हैं। करीब 40 लोगों का स्टाफ यहां पर काम कर रहा है। ऐसे में सालों से सफेद हाथी की तरह काम करने वाले कॉरपोरेशन पर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं कि आज तक मेट्रो रेल सेवा की शुरुआत क्यों नहीं हो पाई है।
उत्तराखंड मेट्रो रेल परियोजना अब चर्चा में क्यों?
दरअसल उत्तराखंड मेट्रो रेल परियोजना के चर्चा में रहने का मुख्य विषय पिछले 8 सालों से मेट्रो का कार्य शुरू न होना और इसके साथ-साथ यहां के स्टाफ को लेकर चर्चा में है। बात ऐसी है कि उत्तराखंड मेट्रो रेल परियोजना के लिए 5 साल के लिए दिल्ली मेट्रो कॉरपोरेशन से डेपुटेशन पर कई सारे ऑफिसर्स को लाया गया था। 31 मई को आधिकारिक रूप से रिटायर हो चुके निर्देशक बृजेश कुमार मिश्रा, जो रिटायर होने के बाद भी ऑफिस आ रहे हैं ऑफिस आने के साथ-साथ ऑफिस की मीटिंग शादी में भी भाग ले रहे हैं।
ऑफिस के बाहर बृजेश कुमार मिश्रा के नाम की बैनर अभी भी लगी हुई है जबकि उनका रिटायरमेंट हो गया है फिर भी वह एक ऑफिसर की भर्ती अपना कार्य कर रहे हैं, कारपोरेशन के सूत्र के अनुसार इस दौरान ऑफिसर बृजेश कुमार मिश्रा है ना तो सरकारी गाड़ी वापस की और ना हीं घर पर तैनात स्टाफ को रिलीव किया। जब इस बारे में बृजेश कुमार मिश्रा से बात की गई तो उन्होंने कहा मैं सेटलमेंट के सिलसिले से ऑफिस गया था मेरे पास किसी भी प्रकार की सरकारी गाड़ी नहीं है मैं अपनी गाड़ी से ऑफिस गया था। इसके अलावा मेरे पास कोई स्टाफ भी नहीं है।
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