uttrakhand news : दरअसल उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी देहरादून के दून के मेडिकल कॉलेज ऑडिटोरियम में नाटक देखने पहुंचे, या नाटक उत्तराखंड सिख समिति के द्वारा आयोजित किया गया था। जिसमें विशिष्ट अतिथि के रूप में दिल्ली सरकार के मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा भी मौजूद थे। ऐसे भी इस नाटक के दौरान बहुत से लोगों के मन में यह सवाल आया होगा कि हिंद का चादर का खिताब किसे मिला है।
किसे मिला hind ki chadar का खिताब ?
सिखों के नवे गुरु तेग बहादुर सिंह जी का सीधा कनेक्शन hind ki chadar से है। इस नाटक में गुरु तेग बहादुर सिंह जी को ही hind ki chadar के खिताब से नवाजा गया था। तेग बहादुर एक ऐसे गुरु है जिन्हें धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति कहा गया है। तेग बहादुर जी एक ऐसे गुरु थे जिनका से शीशगंज दिल्ली लाया गया था। दिल्ली के चांदनी चौक में स्थित गुरुद्वारा आज भी गुरु तेज बहादुर सिंह जी की याद दिलाता है। विश्वास और बलिदान की रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर के बलिदान को सर्वोपरि माना गया है। यही वजह है कि इस नाटक में गुरु तेग बहादुर को hind ki chadar से नवाजा गया था।

कौन थे गुरु तेग बहादुर जी?
सिखों के नवे गुरु तेग बहादुर थे, जिसका जन्म वैशाख कृष्ण पंचमी के दिन पंजाब अमृतसर में हुआ था। इनके पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह था जो भी एक सिख गुरु थे। उनके पिता के द्वारा उन्हें पहले त्याग मल का नाम दिया गया लेकिन बाद में मुगलों के प्रति बहादुरी को देखते हुए इन्हें गुरु तेग बहादुर का नाम दिया गया। तेग बहादुर नाम का अर्थ है तलवार का धनी, गुरु तेग बहादुर को उसके भाई बुद्ध ने तीरंदाजी एवं घुड़सवारी का प्रशिक्षण दिया। गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने पंजाब के बकाला में लगभग 26 साल 9 महीने 13 दिनों तक ध्यान किया। जहां इन्होंने अपना अधिकांश जीवन साधना में ही व्यतीत किया।
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