उत्तराखंड के जंगल इस साल वन की अग्नि से तो सुरक्षित रह रहे हैं लेकिन भारी बरसात से उन्हें गहरी चोट मिल रही है मानसून के दौरान हुई तेज बारिश और नदियों में उफान आने की वजह से जंगलों की जमीन हंसने की स्थिति बढ़ती जा रही है जिससे सैकड़ो पेड़ गिर चुके हैं और बड़ी मात्रा में वन संपदा को नुकसान पहुंच रहा है।
कितने इलाके प्रभावित हुए
वन विभाग द्वारा जारी प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार उत्तरकाशी जिले के धारली, हर्षिल और यमुना घाटी में आरक्षित वनों में लगभग 100 से 120 हेक्टेयर का क्षेत्र प्रभावित हुआ है। इसमें करीब 1500 से 1800 पर जड़ से उखड़ कर या फिर टूट कर गिर गए हैं। न केवल पेड़ पौधे बल्कि वन जाने के रास्ते, वन विभाग के भवन आदि सब क्षतिग्रस्त हो गए हैं।
पौधरोपण को भी नुकसान
वन विभाग हर साल बड़े स्तर पर पौधों को रोकता है लेकिन इस बार लगातार जल भराव और कटाव होने के कारण कई सारे नए पौधे नष्ट हो गए हैं नर्सरी में तैयार किए गए हजारों पौधों भी पानी के बहन से बह गए हैं जिससे की वन रोपने की योजनाओं को बड़ा खटका लगा है।
क्यों बढ़ रहा है Land Erosion
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों की भौगोलिक संरचना पहले से ही संवेदनशील स्थिति में है तेज बारिश होने के दौरान मिट्टी ढलनों से खिसक जाती है और बहकर नदियों में चली जाती है। इसे न केवल जंगलों का अस्तित्व खतरे में आ जाता है बल्कि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी नष्ट हो जाएगी विशेषज्ञ का कहना है कि अनियंत्रित विकास और सड़क निर्माण आदि जैसे कारण से भू कटाव हो रहा है
आगे की चुनौतियाँ
फिलहाल वन विभाग के द्वारा जंगलों में होने वाले क्षति का सर्वेक्षण किया जा रहा है गिरे हुए पेड़ों की गिनती की जा रही है प्रभावित क्षेत्र की पहचान करके फिर से पेड़ रोकने की योजना बनाई जा रही है लेकिन असली चुनौती कटाव रोकने की है। इसके लिए जल निकासी और स्थानीय प्रजातियों के लिए पौधों का रोपण जरूरी होगा।
उत्तराखंड में जंगल इस बार आंख से तो बच गया है लेकिन Land Erosion ने उन्हें गहरी चोट पहुंचा दी है इस घटना से हमें पता चल रहा है कि वन संरक्षण केवल आग बुझाने तक ही सीमित नहीं होता है बल्कि बारिश और कटाव से बचाव करना भी उतना ही जरूरी है।