उत्तरकाशी जिले में बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाएं जैसे भूस्खलन, बाढ़ और झीलों का बनना लोगों के लिए चिंता का विषय है। हाल ही में हुई घटनाओं से पता चलता है कि इन आपदाओं के पीछे एक बड़ा कारण मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) है। यह हिमालय क्षेत्र का एक संवेदनशील हिस्सा है, जहां चट्टानें कमजोर हो जाती हैं और भारी बारिश में आसानी से टूटकर नीचे आ जाती हैं। भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे क्षेत्रों में किसी भी तरह का निर्माण कार्य पूरी तरह से बंद कर देना चाहिए, ताकि जान-माल का नुकसान रोका जा सके।
एमसीटी क्या है और यह कैसे आपदा लाती है?
एमसीटी हिमालय पर्वत श्रृंखला में एक प्रमुख भूगर्भीय रेखा है, जहां दो चट्टानी प्लेटें आपस में टकराती हैं। इस टकराव से चट्टानें कमजोर और भंगुर हो जाती हैं। जब भारी बारिश होती है, तो ये कमजोर चट्टानें टूटकर मलबा बनाती हैं, जो नदियों के रास्ते को रोक देता है। नतीजा? बाढ़, भूस्खलन या झीलों का निर्माण हो जाना।
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण, उत्तरकाशी में जगह-जगह भूस्खलन और स्याना चट्टी में यमुना नदी पर बनी झील है। विशेषज्ञ बताते हैं कि ये क्षेत्र इतने संवेदनशील हैं कि यहां बड़े निर्माण से बचना चाहिए, क्योंकि इससे आपदा का खतरा आने वाले समय में और बढ़ सकता है।
स्याना चट्टी में झील बनी
स्याना चट्टी में भारी बरसात के कारण कुपड़ा गाड़ से भारी मलबा आया, जिसने यमुना नदी के बहाव को रोक दिया। इससे क्षेत्र में एक झील बन गई। यह घटना ठीक वैसी ही थी जैसी धराली और हर्षिल के बीच भागीरथी नदी में हुई थी, जहां तैल गाड़ के मलबे ने नदी को ब्लॉक कर दिया था।
भू-वैज्ञानिक प्रो. एमपीएस बिष्ट के अनुसार, कुपड़ा गाड़ का ऊपरी हिस्सा पहले से ही भूस्खलन का शिकार रहा है। यहां से गुजरने वाली एमसीटी लाइन चट्टानों को इतना कमजोर बनाती है कि बारिश में मलबा तेजी से नीचे की घाटी में बहकर आता है और आपदा पैदा करता है।