Natural Disasters: उत्तराखंड के पहाड़ों से बने पुराने घर आज भी मजबूती और सुरक्षा का एक उदाहरण माना जाता है इन घरों की खासियत यह है कि इन्हें स्थानीय स्थिति और प्राकृतिक खतरों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था। मोटी पत्थर की दीवारें, लकड़ी का सहारा और ढलान वाली छत इन्हें भूकंप और बारिश जैसी स्थितियों में टिकाऊ बनाती है।
Natural Disasters से बचाव की परंपरागत सोच
पूर्वजों ने घर बनाते समय हमेशा से जलधाराओं, नालों और नदियों से दूरी बनाए रखी है। यही कारण है कि जब भारी बारिश या बाढ़ आती है तो यह मकान बहुत कम प्रभावित होते हैं। घर बनाने का तरीका ही ऐसा था कि नीचे भविष्य के लिए स्थान और ऊपर रहने का प्रबंध किया गया रहता था इससे मकान का संतुलन और मजबूती दोनों बनी रहती थी।
निर्माण शैली और उपयोग की गई सामग्री
पुराने पहाड़ी घरों में छत पत्थर की सिलेट से बनाए जाते थे। ताकि अगर बर्फ और बारिश हो तो आसानी से वह नीचे फिसल कर गिर जाए। दीवारें डेढ़ से 2 फीट की मोती बनाई जाती थी जिसमें पत्थर और मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता था। लकड़ी का सहारा मकान को लचीला बनाता था जिससे भूकंप का असर बहुत कम हो कमरे छोटे-छोटे बनाए जाते थे ताकि संरचना पर अतिरिक्त दबाव न पड़े।
आज की स्थिति और चुनौतियाँ
समय के साथ-साथ सीमेंट और कंक्रीट से बने आधुनिक मकान का भी चलन बढ़ता गया लेकिन यह घर कई बार पहाड़ों की प्राकृतिक स्थिति के अनुरूप नहीं होते है, जिससे प्राकृतिक आपदा के समय सबसे ज्यादा नुकसान यहीं घर झेलते है। पुराने घर अब इतिहास और यादों का एक हिस्सा बनते जा रहे हैं लेकिन उनकी मजबूती आज के समय में भी आधुनिक तकनीक को सोचने पर भी मजबूर कर देती है।
पुरानी विरासत से सीख
आज भी उत्तराखंड में कई सारे गांव ऐसे हैं जहां आप भी सैकड़ो साल पुराने घर मौजूद हैं जिन्होंने भूकंप और लैंडस्लाइड जैसी कितनी घटनाओं को झेल लिया है। यह साबित करता है कि पूर्वजों की सोच और निर्माण शैली आज भी हम लोगों से कई आगे हैं।