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उत्तराखंड: संविदा कर्मियों के नियमितीकरण पर हाईकोर्ट की सुनवाई, जानिए क्या हुआ

Authored by: Deepak Panwar
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Published on: 20 August 2024, 8:35 pm IST
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नैनीताल हाईकोर्ट ने 2013 में सरकार द्वारा बनाई गई नियमावली को चुनौती दी है। याचिकाओं की चौतनी को हाईकोर्ट ने निस्तारित कर दिया है। कोर्ट ने 4 दिसंबर 2018 से पहले संविदा पर लगे लोगो के दैनिक वेतन, तदर्थ को नियमित ठहराया है। वहीं सरकार की 2013 की नियमावली के अनुसार दस साल से कार्यरत संविदा कर्मियों को नियमित करने को कहा है।

नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार की 2013 की नियमावली पर दिसंबर 2018 में रोक लगा दी थी। 2018 से सरकारी विभागों, निगमों, परिषदों और अन्य सरकारी उपक्रमों में संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों के नियमितीकरण की प्रक्रिया बंद थी। न्यायाधीश न्यायमूर्ति रितु बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक वर्मा की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है। कोर्ट में याचिका नैनीताल के सौड़ बगड़ निवासी नरेंद्र सिंह बिष्ट, हल्द्वानी के हिमांशु जोशी समेत अन्य ने डाली थी।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि बिना किसी चयन प्रक्रिया के निगमों, विभागों, परिषदों और अन्य सरकारी उपक्रमों सरकार ने बिना किसी चयन प्रक्रिया के नियमित किया है। जिनसे उनके हित प्रभावित हुए हैं। सरकार ने 2011 में सुप्रीम कोर्ट ओर उमा देवी बनाम कर्नाटक राज्य मामले को ध्यान में रखते हुए में नियमावली बनाई थी। जिसमे फैसला लिया गया था कि जिसके तहत 10 वर्ष या उससे ज्यादा समय से दैनिक वेतन, तदर्थ, संविदा में कार्यरत कर्मियों को नियमित किया जाएगा।

उत्तराखंड राज्य गठन के बाद 2011 की नियमावली में जो नहीं आ सके उनके लिए 31 दिसंबर 2013 को एक नई नियमावली बनाई गयी। 2013 नियमावली के अनुसार दिसंबर 2008 में जो कर्मचारी 5 साल या उससे अधिक की सेवा दे चुके हो, उन्हें ही नियमित किया। जाएगा। याचिकाकर्ताओं का मानना था कि 5 साल के बजाय 10 साल करने की जाए. जिसे सरकार ने मान लिया था।

मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाओं को निस्तारित कर फैसले में कहा कि 4 दिसंबर 2018 से पहले जिन कार्मिकों को नियमितीकरण हो गया है, उन्हें नियमित माना जाए। साथ ही अन्य को लिए दस वर्ष या अधिक की सेवा देने के बाद नियमित किया जा सकता है।

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Deepak Panwar
Journalist by profession and the founder of HinduLIVE Media. Has excelled BA Journalism in Digital Media.
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