आजकल तो हर मैच में थर्ड अंपायर की भूमिका इतनी बड़ी हो गई है कि बिना उसके फैसले के खेल अधूरा लगता है। लेकिन क्या तुम्हें पता है कि इस थर्ड अंपायर ने अपना पहला ‘आउट’ किस खिलाड़ी को दिया था? वो कोई और नहीं, बल्कि हमारे अपने सचिन तेंदुलकर थे! हां, वही सचिन जो क्रिकेट के भगवान कहलाते हैं। चलो, इस कहानी को थोड़ा विस्तार से सुनाते हैं, जैसे हम दोनों चाय की टपरी पर बैठकर क्रिकेट की बातें कर रहे हों। मैं कोशिश करूंगा कि सब कुछ सरल भाषा में बताऊं, ताकि पढ़ते हुए मजा आए और जानकारी भी पूरी मिले
क्रिकेट जगत में थर्ड अंपायर पहली बार कहां से आया?
क्रिकेट में पहले सिर्फ दो मैदानी अंपायर होते थे, और उनके फैसलों को ही अंतिम माना जाता था। लेकिन कभी-कभी रन-आउट या स्टंपिंग पर इतना कन्फ्यूजन होता कि मैच का मजा किरकिरा हो जाता। खिलाड़ी बहस करते, फैंस नाराज होते। इसी समस्या को सुलझाने के लिए 1990 के दशक में थर्ड अंपायर का आइडिया आया। ये विचार सबसे पहले श्रीलंका के एक पूर्व खिलाड़ी महिंदा विजेसिंघे ने दिया, और आईसीसी ने इसे 1992 में टेस्टिंग शुरू की। उस जमाने में टीवी रिप्ले नई-नई चीज थी, और इसे फैसलों में इस्तेमाल करना जैसे क्रिकेट में कोई जादू लाना था। थर्ड अंपायर का काम बस इतना – मैदानी अंपायर अगर शक में हों, तो वो टीवी पर रिप्ले देखकर फैसला दे। आज तो ये सिस्टम डीआरएस के साथ इतना हाई-टेक हो गया है कि गेंद का ट्रैक तक पता चल जाता है, लेकिन शुरुआत बहुत सिंपल थी।
अब आते हैं उस ऐतिहासिक मैच पर। बात है 1992 की, जब भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका के दौरे पर गई थी। दक्षिण अफ्रीका उस वक्त अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी कर रहा था, रंगभेद के लंबे बैन के बाद। सीरीज का पहला टेस्ट डरबन के किंग्समीड ग्राउंड पर खेला गया, 13 नवंबर को। भारतीय कप्तान थे मोहम्मद अजहरुद्दीन, जिन्होंने टॉस जीतकर पहले फील्डिंग चुनी। दक्षिण अफ्रीका की टीम ने 254 रन बनाए, जिसमें उनके कप्तान केपलर वेसल्स का शतक शामिल था। भारत की ओर से कपिल देव ने तीन विकेट लिए, और बाकी गेंदबाजों ने अच्छा साथ दिया। मैच रोमांचक था, क्योंकि दोनों टीमें मजबूत थीं।
भारत की बल्लेबाजी शुरू हुई तो शुरुआत ही खराब
अजय जडेजा, संजय मांजरेकर जैसे खिलाड़ी जल्दी पवेलियन लौट गए। स्कोर था 38 पर चार विकेट। तब क्रीज पर उतरे 19 साल के सचिन तेंदुलकर, जो उस वक्त क्रिकेट की नई सनसनी थे। वो रवि शास्त्री के साथ मिलकर पारी संभालने लगे। सचिन ने 11 रन बना लिए थे, और लग रहा था कि वो लंबी पारी खेलेंगे। तभी ब्रायन मैकमिलन की गेंद पर सचिन ने सिंगल लेने की कोशिश की। शास्त्री ने उन्हें वापस भेजा, लेकिन दक्षिण अफ्रीका के फील्डर जोंटी रोड्स ने अपनी मशहूर तेजी दिखाई। उन्होंने गेंद उठाकर एंड्रयू हडसन की ओर फेंकी, और हडसन ने स्टंप्स उड़ा दिए।
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अब मैदानी अंपायर सायरल मिचली को शक हुआ कि क्या सचिन क्रीज में पहुंच गए थे? उन्होंने फैसला थर्ड अंपायर को भेजा। थर्ड अंपायर थे कार्ल लिबेनबर्ग, जो टीवी पर रिप्ले देख रहे थे। रिप्ले में साफ दिखा कि गेंद स्टंप्स पर लगने से ठीक पहले सचिन का बल्ला क्रीज से बाहर था। बस, फैसला आउट! ये था क्रिकेट इतिहास का पहला थर्ड अंपायर आउट। सचिन हैरान, टीम निराश, लेकिन दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी खुशी से झूम उठे। भारत की पारी 277 पर खत्म हुई, प्रवीण आमरे के शतक की वजह से। मैच ड्रॉ रहा, लेकिन ये पल हमेशा याद रखा जाएगा। सचिन के नाम ये अनोखा रिकॉर्ड जुड़ गया, जो कभी नहीं मिट सकता।
क्रिकेट इतिहास की अनोखी घटना
इस घटना के बाद थर्ड अंपायर ने क्रिकेट को पूरी तरह बदल दिया। पहले ये सिर्फ रन-आउट के लिए था, लेकिन धीरे-धीरे कैच, एलबीडब्ल्यू और बॉउंड्री पर भी इस्तेमाल होने लगा। खिलाड़ी इसे पहले नापसंद करते थे, कहते थे कि मशीनें खेल का मजा खराब कर रही हैं। लेकिन आज ये जरूरी हिस्सा है। सोचो, अगर थर्ड अंपायर न होता, तो कितने गलत फैसलों से मैच हार-जीत बदल जाते। सचिन का करियर तो वैसे भी शानदार रहा – 200 टेस्ट, हजारों रन, लेकिन ये छोटा सा पल हमें याद दिलाता है कि क्रिकेट में कुछ भी हो सकता है।
दरअसल ये मैच दक्षिण अफ्रीका ने सीरीज 1-0 से जीती। सचिन वैसे तो कई रिकॉर्ड्स के मालिक हैं, जैसे वनडे में पहला दोहरा शतक। आज के क्रिकेट में थर्ड अंपायर हॉक-आई जैसी तकनीकों से लैस हैं, जो फैसलों को लगभग परफेक्ट बनाती हैं।